You are here
Home > महत्वपूर्ण ज्ञान > बच्चों को नैतिक शिक्षाा कैसे दे

बच्चों को नैतिक शिक्षाा कैसे दे

हमारे देश में प्रायः सभी विद्यालयों में बच्चों को नैतिक शिक्षा देने की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता और दिया भी जाता है तो वह कान चलाऊ होता है। धचे राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं। आज सूचना क्रांति आई है तो इसके दुष्परिणाम भी तेजी से सामने आए हैं। हमें अपने बच्चों को टेलीविजन, मोबाइल फोन, इंटरनेट तथा अन्य माध्यम से परोसी जा रही अनुचित सामग्रियों से बचाना है। युवा पीढ़ी के भटकाव तथा नैतिक मूल्यों में आई गिरावट को दूर करने के लिए हमें बच्चों को अनुशासन तथा अन्य संस्कारों की सीख देनी जरूरी है। यह किसी भी राष्ट्र या समाज के निर्माण के लिए जरूरी है। वैसे भी बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास या उनमें संस्कार डालने की प्रथा आज से नहीं बल्कि आदिकाल से चली आ रही है। हमारे धर्मग्रंथों का यही उद्देश्य रहा है कि वह व्यक्ति के अंदर नैतिक गुणों का विकास करें ताकि व्यक्ति स्वयं को तथा दूसरों को सही दिशा दिखा सके। बचपन में सीखे पाठ बनों को ताउम्र याद रहते हैं।

घर से सीख

अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक विलियम हेजलिट लिखते हैं कि संसार में बच्चे का प्रथम प्रवेश विद्यालय होता है। इसके पूर्व बच्चा घर पर ही रहता है। कहीं आता-जाता भी है तो माता-पिता के साथ। अतः बच्चों में अच्छे संस्कार एवं आदर्श स्थापित करने का उत्तरदायित्व सबसे पहले उसके माता-पिता का ही होता है। वह अनुशासन का पाठ सबसे पहले घर में ही सीखता है। समय से खाना , पढ़ना, खेलना, सोना

सभी वह घर में ही सीखता है। घर के स्नेहशील | वातावरण में बच्चा बड़ॉ का आदर करना, बोलचाल में सभ्यता तथा सौम्यता, एक-दूसरे के प्रति लगाव जैसी चीजें बड़ी जल्दी सीखते हैं। आज की युवा पीढ़ी अपने आपको खुले विचारों एवं माडर्न वर्ग का कहलवाकर गर्वित होती है। ऐसे में उसे बड़ों तथा गुरुजनों का सम्मान करते आना चाहिए।

संगत से सीख

जब बच्चे एक-दूसरे के साथ खेलते हैं तो उनमेंसामाजिकरण की भावना पैदा होती है। कुसंगति बच्चों के लिए हानिकारक है। झूठ बोलना, चोरी करना, छोटे-मोटे अपराधों की शुरूआत यहीं से होती है। याद रखें, बच्चा बुराई को सबसे जल्दी आत्मसात कर लेता है। इसे ध्यान में रखते हुए उसकी संगत पर जरूर नजर रखें। वह कहां खेलता है ? कौन उसके दोस्त हैं यह समझना माता-पिता का दायित्व है । माता-पिता के खुद के दोस्त कौन हैं ? इसका भी उन्हें ध्यान रखना चाहिए। इसका पूरा ध्यान रखें कि बुरी संगत आपके सारे सकारात्मक प्रयासों पर पानी फेर सकती है। इसके अलावा आपके दोस्त भी यदि पीने वाले हैं। तो यह बात भी ध्यान रखना जरूरी है कि घर में ऐसा कभी न हो। घर में आपके दोस्त सिगरेट पीते हैं तो बच्चे अकेले में ऐसा कर सकते हैं। इस बात को नजरअंदाज न करें। बच्चे को जेब खर्च दें तो बराबर ध्यान रखें कि वह कहां खर्च करता है।

मनोरंजन से सीख

बच्चों को नैतिक मूल्यों की जानकारी देने में मौजमस्ती और मनोरंजन की भूमिका भी अहम होती है। | अच्छी फिल्में, टी.वी. प्रोग्राम, कॉमिक्स, कहानियां बच्चों के लिए स्वस्थ मनोरंजन का साधन होने के साथ-साथ उनके कोमल मस्तिष्क पर जल्दी असर डालती हैं। किताबों में रूचि पैदा करने के लिए बच्चों को पुस्तक मेले में ले जाएं। कहा भी गया है कि । “शब्दों से ज्यादा तस्वीर दिमाग में छाप छोड़ती है।” ढेर सारी पुस्तकें देखने से उनकी रूचि पढ़ने के प्रति बढ़ती है। परियों से लेकर चट्टान, नदी हर एक चीज को हम अपने चारों ओर देखते हैं उसकी जानकारी बच्चों को पुस्तकों से मिलेगी। उन्हें किताबें खरीदकर देने में कंजूसी न करें।

स्वावलंबन से सीख

माता-पिता दोनों ही जॉब में है या नही भी हैं तो भी बच्चों को स्वावलंबी मनाएं। उनमें से संस्कार डाले कि वे जिम्मेदार तथा आत्मनिर्भर बन सके। उसे चाहे वह छोटा ही क्यों न हो परिवार का आवश्यक हिस्सा माने तथा बचपन से ही उसके सामर्थ के हिसाब से उसे काम सोपे। इससे एक तो उसमें अपना काम करने की आदत पङेगी, दूसरा आपका मार्गदर्शन मिलने से वह एक ईमानदार,  सफल एवं जिम्मेदार नागरिक बनेगा।

अध्यात्म से सीख

धार्मिक ग्रंथों की जानकारी भी बच्चो में संस्कार भरती है। ऐसे में एक खबर सुखद है कि अब स्कूलों में गीता भी पढ़ाई जाएगी। गीता बच्चों में संस्कार डालती है तो युवाओं को कर्म के लिए प्रेरित करती है। गीता को एक बुजूर्ग के अनुभव का सार भी कहा जाता है, जिसके द्वारा जीवन निर्माण की राह आसान हो जाती है। गीता अनुशासन का संस्कार देती है, जो किसी भी राष्ट्र या समाज के निर्माण के लिए जरूरी है। कहा भी गया है कि गीता जीवन की सभी समस्याओं का हल है। जीवन में ऐसी कोई भी समस्या नहीं है जिसका गीता के अंदर समाधान ना हो। गीता से बच्चे जीवन जीने की कला सीखते हैं।

Leave a Reply

Top