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डायबिटीज के लक्षण, कारण और बचाव के तरीके

डायबिटीज के लक्षण, कारण और बचाव के तरीके:- हेलो दोस्तो इस पोस्ट के माध्यम से आपको बताने जा रहे हैं डायबिटीज के लक्षण, कारण और बचाव के तरीके कृपया इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें क्योंकि यह पोस्ट आपके लिए काफी फायदेमंद हो सकती है |

डायबिटीज के लक्षण, कारण और बचाव के तरीके

  • थकान महसूस होना

डायबिटीज होने पर इसके शुरुआती दिनों में आपको सारा दिन थकान महसूस होगी। हर रोज भरपूर नींद लेने के बाद भी सुबह उठते ही आपको ऐसा लगेगा कि आपकी नींद पूरी नहीं हुई है और शरीर में थकान सी महसूस होगी। इससे यह पता चलता है की खून में शुगर का लेवल लगातार बढ़ रहा है।

  • लगातार पेशाब लगना

मधुमेह होने पर बार-बार पेशाब आने लगता है। जब शरीर में ज्यादा मात्रा में शुगर इकट्ठा हो जाता है तो यह पेशाब के रास्ते से बाहर निकलता है, जिसके कारण मधुमेह रोगी को बार-बार पेशाब लगने की शिकायत शुरू हो जाती है।

  • अत्यधिक प्यास लगना

मधुमेह रोगी को बार-बार प्यास लगती है। चूंकि पेशाब के रास्ते से शरीर का पानी और शुगर बाहर निकल जाता है जिसके कारण हमेशा प्यास लगने जैसी स्थिति बनी रहती है। लोग अक्सर इस बात को हल्के में ले लेते हैं और समझ ही नहीं पाते कि उनकी बीमारी की शुरुआत अब हो चुकी है।

  • आंखें कमज़ोर होना

मधुमेह रोग की शुरूआत में आंखों पर काफी प्रभाव पडता है। डायबिटीज के मरीज में रोग की शुरूआत में ही आंखों की रोशनी कम होने लगती है और धुंधला दिखाई पडने लगता है। किसी भी वस्तु को देखने के लिए उसे आंखों पर ज़ोर डालना पडता है।

  • अचानक वज़न कम होना

मधुमेह रोग की शुरूआत में ही अचानक वज़न तेजी से कम होने लगता है। सामान्य दिनों की अपेक्षा आदमी का वजन एकाएक कम होने लगता है।

  • जोर से भूख लगना

डायबिटीज के मरीज का वजन तो कम होता है लेकिन भूख में बढोतरी भी होती है। अन्य दिनों की अपेक्षा आदमी की भूख कई गुना बढ जाती है। बार-बार खाना खाने की इच्छा होती है।

  • घाव का जल्दी  भरना

अगर आपके शरीर में चोट या कहीं घाव लग जाए और यह जल्दी ना भरे, चाहे कोई छोटी सी खरोंच क्यों ना हो, वह धीरे-धीरे बडे़ घाव में बदल जाएगी और उसमें संक्रमण के लक्षण साफ-साफ दिखाई देने लगेंगे।

  • तबियत खराब रहना

डायबिटीज मरीज के शरीर में किसी भी तरह का संक्रमण जल्दी से ठीक नही होता है। अगर आपको वायरल, खॉसी-जुकाम या कोई भी बैक्टीरियल इंफेक्शन हो जाए तो आपको राहत नहीं मिलेगी। छोटे-छोटे संक्रमण जो आसानी से खुद ठीक हो जाते हैं बढे घाव बन जाते हैं।

  • त्वचा के रोग होना

मधुमेह की शुरूआत में त्वचा संबंधी कई रोग होने शुरू हो जाते हैं। त्वचा के सामान्य संक्रमण बडे घाव बन जाते हैं।

  • आनुवंशिक कारण

आपके परिवार में किसी अन्य सदस्य को भी मधुमेह की समस्या रही हो तब भी आपको सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि यह एक आनुवांशिक बीमारी है।

डायबिटीज की वजह से होने वाली जटिलता और उनसे बचाव के तरीके :-

माइक्रो -वैसक्युब्यूलर जटिलताएं: इसमें आंखों(रेटिनोपैथी) मैं दृष्टिहीनता बढ़ाने, किडनी फेलियर और नवर्स  (न्यूरोपैथी) तक पहुंच जाती है, जिससे डायबिटीक फुट डिस ऑर्डर के लिए जिम्मेदार है |

मैक्रो -वैसक्युब्यूलर जटिलताएं: इसमें बड़ी रक्त वाहिकाओं के कारण होने वाली समस्याओं में हृदय संबंधी रोग हो सकते हैं जैसे हार्ट अटैक, स्ट्रोक, पैरों में रक्त का सही ढंग से न पहुचना  शामिल है |अध्ययन में यह पाया गया है कि टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज में मेटाबॉलिक कंट्रोल रखें तो इन जटिलताओं को लंबे समय तक होने या स्थिति गंभीर होने से रोक सकते हैं|

डायबिटीज का आंखों पर असर :-डायबिटीज रेटिना की रक्त शिराओं या आंखों के पीछे  के भाग को क्षतिग्रस्त कर सकती हैं| रेटिना पर होने वाले इस असर  की वजह, से दृष्टि कमजोर हो सकती है या दृष्टिहीनता की स्थिति बन सकती है| डायबिटीज की वजह से आंखों में होने वाले गंभीर रोग रक्त शिराओं की समस्याओं से ही शुरू होते हैं|

नान-प्रोलिफरेटिव रेटिनोपैथी :-यह रेटिनोपैथी का सबसे सामान्य प्रकार है| आंख के बलून और फार्म पाउच  में कैपिलरी पहुंच जाती है |यह समस्या तीन स्तर पर माइल्ड, मारेट और सीवर होती है| यह अधिकांश रक्त शिराओं के अवरुद्ध  कर देती है|

मैंकुलर एडिमा:-रेटिनोपैथी इस स्टेज में हलांकि दृष्टि में दोष का कारण नहीं बनती है, लेकिन कैपिलरी वाल रक्त और रेटिना के बीच वस्तुओं के पास होने की नियंत्रित करने की क्षमता को खो  सकती है| मैक्युला जहां ध्यान केंद्रित होता है, वहां से द्रव्य निकल सकता है| मैक्युला में सूजन के साथ द्रव्य बह रहा हो तो उस स्थिति को मैक्युला एडिमा कहते हैं| ऐसी स्थिति में धुंधला दिखना या बिल्कुल न दिखने की स्थिति भी बन सकती है| हालांकि नान-प्रोलिफरेटिव रेटिनोपैथी में सामान्यत: इलाज की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन मैकुलर एडिमा का इलाज किया जाना आवश्यक है| कई बार यह इस समस्या को रोकने के साथ ही दृष्टिदोष को भी ठीक करने में लाभदायक है|

प्रोलिफरेटिव रेटिनोपैथी :- यह समस्या सालों बाद अधिक बढ़ जाए तो उसे प्रोलिफरेटिव  रेटिनोपैथी कहते हैं| इसमें रक्त शिराए अधिक क्षतिग्रस्त हो जाती है, वे बंद होने के करीब पहुंच जाती है| ऐसे में नई रक्त शिराए रेटिना में जन्म लेने लगती है यह नई रक्त शिराए कमजोर होती है और इनसे रक्त भी बहने लगता है| इसमें दृष्टि में बाधा आने लगे तो इसे विट्रीयस  हेमोरेज कहते हैं| नई रक्त शिराओं के कारण कोशिकाएं के निशान बढ़ने लगते हैं जैसे- जैसे कोशिकाओं के निशान कम होने लगे तो रेटिना विकृत हो सकता है| या जगह से अलग हो सकता है|इसे रेटिना डिटेचमेंट कहते हैं|

ग्लूकोमा:-आंखों पर बीमारियों का ये समूह आप्तिक नर्व  को क्षतिग्रस्त करता है| डायबिटीजहै तो ग्लूकोमा की आशंका दोगुनी होती है, समय पर इलाज न होने से कमजोर दृष्टि या दृष्टिहीनता हो सकती है|

कैटरेक्ट या मोतियाबिंद:-

डायबिटीज से ग्रसित लोगों में मोतियाबिंद के कम उम्र में  होने की आशंका अधिक रहती है | हाई ब्लड ग्लूकोज लेवल, हाई ब्लडप्रेशर हाई ब्लड कोलेस्ट्रोल, स्मोकिंग डायबिटीज से होने वाली आंखों की समस्या को तेजी से बढ़ाते हैं|

डायबिटीज के मरीजों के लिए आंखों की जांच के नियम :-

नियम-1  डायबिटीज पता चले के 5 साल बाद खर्चा आंखों की जांच करानी चाहिए |

नियम – 2 डायबिटीज के मरीजों को डायबिटीज के पता चलने के बाद से ही साल में एक बार आंखों की जांच करानी चाहिए |

प्रेगनेंसी कॉन्प्लीकेटिग डायबिटीज

महिला को नियम -1 और नियम -2 डायबिटीज है तो उन्हें प्रेगनेंसी के पहले आंखों का  परीक्षण कराना चाहिए या प्रेगनेंसी के शुरूआती 3 महीनों में स्थिति के अनुसार परीक्षण प्रेगनेंसी के दौरान भी करा सकते हैं और बच्चे के जन्म के 1 साल बाद भी कराना आवश्यक है |

जीडीएम से पीड़ित महिलाएं

इससे पीड़ित महिलाओं को आंखों के परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि डायबिटीज की वजह से आंखों की बीमारी ऐसे में सिर्फ प्रेगनेंसी के दौरान होती है| प्रेगनेंसी के दूसरे  तिमाही में जीडीएम सामान्य हो जाता है|

 

डायबिटिक किडनी डिसीज और बचाव के लिए

डायबिटीज के मरीजों को हो सकते हैं किडनी संबंधी रोग

  •  ब्लड ग्लूकोज यदि ज्यादा बड़ा हो |
  • ब्लड प्रेशर अधिक हो|

डायबिटीज ग्लोमेरुली (किडनी में मौजूद छोटी रक्त  शिराएं) को भी क्षतिग्रस्त कर सकते हैं ,जो रक्त से आने वाले अपशिष्ट पदार्थ को छानती हैं | ग्लोमेरुली के अधिक क्षतिग्रस्त होने पर किडनी फेलियर या किडनी के ठीक न होने वाले अंतिम स्टेज का रोग हो सकता है, जिसकी वजह से किडनी ट्रांसप्लांट डायलिसिस की आवश्यकता होती है| इससे बचाव के लिए ब्लड ग्लूकोज और ब्लड प्रेशर दोनों को नियंत्रण में रखना चाहिए|

डायबिटिक के बचाव 

  1. शुगर के मरीज को अनुलोम विलोम कपालभाति आदि  योगासन करने चाहिए |
  2. शुगर के रोगी को रेगुलर  शुगर लेवल टेस्ट करवाते रहना चाहिए करना चाहिए |
  3. बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी मेडिसन नहीं लेनी चाहिए|
  4. शुगर के रोगी को खास तौर पर अपने पैरों को बचाकर रखना चाहिए | शुगर होने पर अपने पैरों का ध्यान रखें और घाव चोट आदि से अपने पैरों को बचाए रखें | छोटी- मोटी चोट को मामूली सी ना समझे |
  5. कठिन परिश्रम करते रहना चाहिए ताकि शरीर का वजन कंट्रोल में रहे और अच्छी नींद लें |
  6. डायबिटीज रोगियों के लिए जामुन का सेवन फायदेमंद है। जामुन की गुठली भी बहुत फायदेमंद होती है। गुठली का बारीक चूर्ण बनाकर रख लेना चाहिए। दिन में दो-तीन बार तीन ग्राम चूर्ण का पानी के साथ सेवन करने से मूत्र में शर्करा की मात्रा कम होती है।
  7. मधुमेह रोगियों को खाने में शलजम का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रयोग से भी रक्त में स्थित शर्करा की मात्रा कम हो जाती है। इसलिए शलजम की सब्जी या सलाद के रुप में शलजम का सेवन करना चाहिए|
  8. अगर आप Smoking करते हैं तो आपको मधुमेह होने का खतरा दोगुना हो जाता हैं।

हम आशा करते हैं कि इस पोस्ट के बाद उसे हमने जो भी डायबिटीज के लक्षण, कारण और बचाव के तरीके बताए हैं वह आपके लिए काफी उपयोगी है।

 

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